CHINTAN JAROORI HAI
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एक पेड पर पनाह पाकर आपदा से बचा
आज वृक्षोँ की अहमियत को जान पाया है
गरीबोँ की रोटी का हक मार के पाले बच्चे
आज उन्हीँ बच्चोँ को भूख से बिलखता पाया है
जिस मँज़र को मानता था कभी तरक्की का निशाँ
वही मंज़र विनाश का सबब बन के आया है
करता था दोहन धरा का न लेता था सबक
आज पृकृति ने उसे खुद ही पाठ पढाया है
न मानता था खुदा को उसके दर को सैरगाह समझा
उसी दर पर अपना सर्वस्व गँवाया है
यूँ तो हर वर्ष जंगल जलाया करता था
आज अपनोँ की लाशोँ को भी जला न पाया है
jagranjunctionforum
दीपक पाँडे J N V नैनीताल
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