CHINTAN JAROORI HAI
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देखी जो किनारे पर लाश वापस दरिया मेँ बहा दी उसने
जिन्दोँ से ज्यादा अदा करनी पडती मूर्दोँ की कीमत है
लाशोँ की सियासत पर आमादा हैँ राजनीतिज्ञ
आम इन्साँ की फिक्र की किसे जरूरत है
सरकारी अमला इस कदर बेकार हो गया
अब भी सेना मेँ है जमीर ये गनीमत है
जंगलोँ को काट कर यहाँ बंजर बना डाला
अब इस चमन मेँ नहीँ दरख्तोँ की कोई जीनत है
ऐसे मंज़र मेँ भी लूट का दामन नहीँ छूटा
‘ अतिथी देवो भव ‘ की करी चन्द इन्सानोँ ने फजीहत है
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