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अकसर देखा गया है कि हर व्यक्ति अपने बचपन को याद करता है तथा उसे जीवन का स्वर्णिम समय बताता है क्या अब समय बुरा आ गया है नहीँ दुनिया आज भी अच्छी है पर नजरिया बदल गया आज भी बच्चे बनकर दुनिया देखेँ ये उतनी ही खूबसूरत नजर आयेगी इसी सिलसिले मेँ एक कविता पेश कर रहा हूँ
माना कि ये जिन्दगी काँटोँ से भरी है
कष्ट है हर पल मुश्किल हर घडी है
जीने को तो अभी एक उम्र पडी है
इस उम्र को यूँ ही न दुखोँ मेँ गँवाईये
थोडी सी देर के लिए बच्चे बन जाईये
हर पुष्प मेँ तुम्हेँ मुस्कराहट भी दिखेगी
आकाश मेँ सितारोँ की झिलमिलाहट भी दिखेगी
भोर मेँ पक्षियोँ की चहचहाहट भी मिलेगी
फूलोँ मेँ तितलियो की गुनगुनाहट भी मिलेगी
जीवन के इस उपवन मेँ पुष्प को खिलाईये
थोडी सी देर के लिए बच्चे बन जाईये
नदियोँ मेँ पानी की कलकल भी मिलेगी
जल मेँ कंकड फेँककर हलचल भी मिलेगी
बरसते हुए पानी की छलबल भी मिलेगी
हर पौँधे मेँ उभरती नयी कोँपल भी मिलेगी
डूबिये न भँवर मेँ किनारे पर आईये
थोडी सी देर के लिए बच्चे बन जाईये
फूलोँ से पटी हुई घाटी भी मिलेगी
बच्चोँ के मुख मेँ भरी माटी भी मिलेगी
हर बाला के हाथोँ मेँ गुडिया भी मिलेगी
चाँद मेँ सूत कातती बुडिया भी मिलेगी
बंद आँखोँ मेँ हर एक स्वप्न को साकार पाईये
थोडी सी देर के लिए बच्चे बन जाईये
दीपक पाँडे नैनीताल
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