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तुम ही मेरा अभिनन्दन हो [कविता]

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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कविता के इस नव प्रभात मेँ ,

तुम ही मेरा वन्दन हो ।

माँ सरस्वति को करुँ समर्पित ,

तुम ही तो वह चन्दन हो।

जीवन की इस नव बगिया मेँ ,

तुम्हीँ भ्रमर का गुंजन हो।

तुम ही मेरी प्रथम प्रेरणा

तुम ही अन्तिम स्पन्दन हो ।

इस उपवन की नवीन लता का
,
तुम ही तो अवलम्बन हो।

मेरे उर की नव त्रिष्णा का
,
तुम ही वह आलिँगन हो ।

इस जीवन के प्रथम प्रणय का ,

तुम ही तो वह चुम्बन हो।

पीडा मेँ आनन्दित करता,

अग्नितप्त वह कुन्दन हो।

तुममेँ लिखता तुमको लिखता ,

तुम ही मेरा अभिनन्दन हो ।

दीपक पाँडे नैनीताल

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