CHINTAN JAROORI HAI
- 179 Posts
- 948 Comments
अपने उसूलोँ से समझोता कर न सके ।
खुद की नजरोँ मेँ वो नवाब रहे ॥
जिन्दगी काट दी काँटो के बिस्तर पर ।
सबकी नजरोँ मेँ जो गुलाब रहे ॥
अपने ही उनको कभी समझ न सके ॥
गैर की नजरोँ मेँ जो खुली किताब रहे ॥
शमा की आरजू मेँ जल जल कर ।
आखिर बन के वो आफताब रहे ॥
जहाँ से गुजरे सबको गले लगाते चले ।
दुश्मन उनके भी बेहिसाब रहे ॥
खुद को तिनका भर भी बदल न सके ।
दुनिया बदलने के जिनके ख्वाब रहे ॥
दीपक पाण्डे
Read Comments