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अपने उसूलोँ से समझोता कर न सके

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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अपने उसूलोँ से समझोता कर न सके ।

खुद की नजरोँ मेँ वो नवाब रहे ॥

जिन्दगी काट दी काँटो के बिस्तर पर ।

सबकी नजरोँ मेँ जो गुलाब रहे ॥

अपने ही उनको कभी समझ न सके ॥

गैर की नजरोँ मेँ जो खुली किताब रहे ॥

शमा की आरजू मेँ जल जल कर ।

आखिर बन के वो आफताब रहे ॥

जहाँ से गुजरे सबको गले लगाते चले ।

दुश्मन उनके भी बेहिसाब रहे ॥

खुद को तिनका भर भी बदल न सके ।

दुनिया बदलने के जिनके ख्वाब रहे ॥

दीपक पाण्डे

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