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लोकतंत्र में परम्पराएँ जनता तोडती है नेता नहीं मन की मोदी के नाम पर विवाद है परन्तु इस बात को भी झुटलाया नहीं जा सकता की मोदी के नाम पैर ही भजपा संगठित हो पाई और जनता के मन में भी एक नयी आशा जगी मोदी का नाम हमेशा गुजरात दंगो के साथ लिया जाता raha है और वह भी नकारात्मक छवि के साथ लेकिन इस बात का एक अन्य पहलु यह भी है मोदी नेशनल लेवल पर भी एक दृड़ नेता के रूप में उभरकर भी इन दंगो के बाद ही आये इसमें उन्होंने और पार्टी की भांति वोट बैंक की खातिर किसी एक जाती vishesh का पक्ष नहीं लिया
नेता तो अटल बिहारी भी उत्तम थे परन्तु आज देश की जरुरत एक कड़क और ताक़तवर नेता की है की जनता जतिव्दी राजनीती से तंग आ चुकी है वह अब एक ऐसा नेता की तलाश में है जिसका मुख्या मुद्दा विकास हो गुजरात हो इस देश में जनता को धर्म से पहले रोटी की जरुरत है उसे मंदिर या मस्जिद निर्माण से क्या लेना देना जिसका अपना एक घर तक न हो मनुष्य की पहली जरुरत रोटी कपडा और मकान है दंगे फसाद में सत्ता किसी का भी पक्ष ले मरता तो इंसान ही है
आज देश को भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिए एक सख्त नेता की जरुरत है आज जरुरत है इस देश को भी विश्व में एक सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया जाय अब ये फैसला जनता के हाथ में है की वह गुजरात की तरह शांति की बहाली के साथ सुख से रोटी कपडा मकान सहित रहना छाहती है या खुद बेघर होकर भगवन और खुद के आशियाँ की खातिर आपस में अपनों का खून बहाना छाहती है
हर बार एक कमजोर और लचर नेतृत्व चुनने के बजाय शायद जनता एक सशक्त दबंग और कर्मठ नेता के पक्ष में जाना पसंद करेगी अब यह फैसला जनता के ही हाथ में है की इस प्रकार की छवि वह किस नेता के रूप में देख रही है वैसे भी कहा जाता है कि एक कमजोर मित्र से एक ताक़तवर शत्रु भी भला होता है ऐसा नेता को शायद विपक्ष भी पसंद करेगा
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