Menu
blogid : 14778 postid : 618235

दीप और बाती (kavita)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
  • 179 Posts
  • 948 Comments

एक दिन एक बाती
दीप से यूं मिल गयी
बोली कौन सा पड़ाव है
उम्र का ठहराव है
मैं जन्म से मलंग हूँ
अपने आप में स्वच्छंद हूँ
बाती अलविदा हुई
दीप से जुदा हुई
अंधकार छा गया
बाती में विकार आ गया
दीप में विकास न रहा
बाती में प्रकाश न रहा

एक दिन एक बूँद
सीप में समां गयी
आते ही घबरा गयी
ये कहाँ मैं आ गयी
मन में जंग छिड़ी हुई
सीप से घिरी हुई
जल के एक बहाव में
बूँद वो निकल पड़ी
अब न कोई प्रभुत्व था
न कोई अस्तित्व था
जाने कहाँ वो खो गयी
माती में विलीन हो गयी

बाती हो या दीप हो
बूँद हो या सीप हो
जब तक वो संग संग हैं
जिंदगी में रंग हैं
मोती का विकास है
दीप में प्रकाश है
बाती का उपदेश है
जीवन का ये सन्देश है

Tags:      

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply