CHINTAN JAROORI HAI
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यूँ तो रावण हर वर्ष जलता ही रहा है
जनमानस के दिलोँ मेँ मगर पलता ही रहा है
हर शहर मेँ ही होता है सीता का हरण
जटायु हर एक क्षण यहाँ कटता ही रहा है
सियासत यहाँ कैकैयी के बस वचन पे है टिकी
दशरथ हर पल हाथ को मलता ही रहा है
कोख मेँ आते ही दफन हो जाती है कन्या
पूजन कन्या का हर घर मेँ मगर चलता ही रहा है
आओ नयी रीत से दशहरा पर्व मनायेँ
सर्वप्रथम मन मेँ बसे रावण को जलायेँ
अब हो न किसी कोने मेँ भी सीता का हरण
समाज को अब इतना संस्कारी बनायेँ
जहन मेँ बसी हुई कैकैयी को करेँ विदा
दशरथ मेँ सोये हुए जमीर को जगायेँ
नारी मेँ बसी कन्या को न होने देँ दफन
नारी को नारी ही रहनेँ देँ न देवी बनायेँ
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