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मेरी तीन कवितायेँ बाल दिवस पर -जागरण जंक्शन फोरम

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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(१)
बचपन की चाह ( कविता )

चाह यही है मेरी मैँ भी

आसमान मेँ उड जाऊँ

बादल के संग होली खेलूँ

चिडियोँ संग बतियाऊँ

तितली जैसे पंख लगाकर

परियोँ जैसा इठलाऊँ

अलग अलग फूलोँ मेँ बैठूँ

और मकरन्द चुराऊँ

इन्द्रधनुष के सतरंगी

रंगो सी पतंग बनाऊँ

रेशम की डोरी से उसको

चंदा तक पहूँचाऊँ

रिमझिम रिमझिम

पानी मेँ भीगूँ

कागज की नाव चलाऊँ

रंगबिरंगी मछली संग

पानी मेँ कूद लगाऊँ

आसमान के तारोँ को

झोली मेँ भर कर लाऊँ

जुगनु जैसा चमकूँ मैँ

कण कण मेँ दीप जलाऊँ ॥

(२)

चाकलेट का गमला ला दो (कविता )

मेरी माँ मुझको इक चाकलेट का गमला ला दो ।

उसमेँ जूस सेब का भर के टाफी का पेड लगा दो ॥

उस पेड पर चड कर मैँ आसमान पर जाऊँ ।

चिडियोँ से करुँ बाँते कोयल को गीत सुनाऊँ ॥

इन्द्रधनुष पर बैठ गगन मेँ परीलोक तक जाऊँ ।

सूरज की किरण की घिसडपट्टी मेँ फ़िसलूँ , वापस धरती पर आऊँ ॥

आज रात गुब्बारे मेँ बैठकर आसमान जाऊगाँ ।

इक इक पग तारोँ मेँ रखकर चन्दामामा को पाऊगाँ ॥

(३)

बचपन बनाये रखने की खातिर बचपन बिकने को मजबूर है (कविता )

आजकल शहरों में कई ऐसे परिवार हैं
जहाँ इन्सान तो कम कुते बेशुमार हैं
इन्ही में एक ऐसे ही दम्पति हैं
दोनों कमाते हैं अपार संपत्ति है
दोनों की कुल एक ही संतान है
खिलौनों का अम्बार पर बचपन वीरान है
एक दिन दोनों इस समस्या को भांप गए
परिणाम की सोचकर ही काँप गए

पास में ही एक मलिन बस्ती थी
जिंदगी कठिन और मौत सस्ती थी
उसी बस्ती में रहता एक परिवार था
आमदनी तो शून्य संतानों का अम्बार था
खाने के इस कदर पड़ गए लाले थे
बच्चों की रोटी की खातिर
बच्चा बेचने वाले थे

दम्पति ने भी ये फैसला लिया
बचपन लौटायेंगे ये तय किया
बहुत सोचा समझा किया ये उपाय
उसी बस्ती से एक बच्चा खरीद लाये
सोचा अपने बच्चे का भी
मन लगा रहेगा
जो ये साथ साथ खेलेगा
बचपन बना रहेगा
अपना बच्चा स्कूल जायेगा तो ये
घर का काम करेगा

इस देश में आज भी
बच्चों से बचपना कितना दूर है
बचपन बनाये रखने की खातिर
बचपन बिकने को मजबूर है

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