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अपने चालीसवें वर्ष पर

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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चालीसवें साल का ये कैसा खुमार है
पतझर में नजर आ रहा बसंत बहार है
अज्ञान में पले
दरख़्त कट गए
अहम् के बादल
साथ साथ छंट गए
ज़हन के किसी कोने में
न कोई अन्धकार है
चालीसवें साल का ये कैसा खुमार है
कुछ भी न पा सका
न कुछ गवां सका
क्या साथ लाया था
जिससे रखता वास्ता
खाली हैं ये हाथ
सबका मिला है साथ
यही मेरी पगार है
चालीसवें साल का ये कैसा खुमार है
जीवन का मध्य है
नवीन गंतव्य है
भोर कि किरण से
मेरा तारतम्य है
नए आफताब की
तलाश में ये
घुड़सवार है
चालीसवें साल का ये कैसा खुमार है

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