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सरकारी अस्पताल का जनाना वार्ड दो दिन पूर्व ही उसकी पत्नी ने एक शिशु को जन्म दिया है लड़का या लड़की उसे कोई फर्क नहीं पड़ता स्वस्थ डिलिवेरी के लिए आज सरकारी धन से एक हजार रुपये प्राप्त हुए हैं यह उसकी आठवीं संतान है नवजात शिशु को देख उसकी आँखों में चमक है आखिर ये ही तो उसके किस्मत की धरोहर है शिशु को गोद में ले समाज कि भावनाओं से खेलना ज्यादा आसान होता है तथा भीख भी ज्यादा मिलती है पिछले पंद्रह वर्षों से भिक्षावृत्ति ही उसका रोजगार है उसे याद नहीं कि इन पंद्रह सालों में उसे कभी शारीरिक श्रम कि आवश्यकता पड़ी हो गरीबी रेखा से नीचे वाला राशन कार्ड उसने बना रखा है साकार से सस्ता राशन तथा सरकारी अस्पताल कि मुफ्त सुविधाएं उसे मिल ही जाती हैं पांच वर्ष तक बच्चे माँ के साथ भीख मांगने जाते हैं उसके बाद सर्व शिक्षा अभियान के तहत मिड डे मील योजना में खा कर आते हैं तथा घर भी ले आते हैं फिर भी वह अपनी इस समस्या के लिए सर्कार को ही दोषी मानता है
उसे याद है साल पहले जब उसका बड़ा बेटा दंगों में मारा गया था तो सरकार से मिले मुवावजे से उसने शहर के बाहर कुछ जमीन खरीद ली थी इस बार ठण्ड अधिक होने पर उसका छोटा बीटा भी चल बसा इस पर राजधानी में बड़ा बबाल मचा राजनीती में बड़े आरोप प्रत्यारोप लगाये गए उस वाकये में सरकार से मिली धनराशि से उसने एक मकान भी बनवा लिया अब उसके पास कुछ बचत में रुपये भी हो गए हैं
कुछ प्रश्न
(1)क्या गरीबी और भुखमरी के लिए मात्र सरकार ही जिम्मेदार है
(2)क्या हमें सरकार से ही उम्मीद करनी चाहिए या हमारा भी देश के प्रति कोई कर्त्तव्य है
(३)ज्य बच्चे पैदा करने वालों को सरकारी सुविधाएं देना कितना सही है
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