- 179 Posts
- 948 Comments
बरसोँ से इन जंगलोँ मेँ पल रहे थे नक्सली
मेहनत की आग मेँ हर पल जल रहे थे नक्सली
अपने भविष्य को स्वयं सजा रहे थे नक्सली
जिन हाथोँ से अन्न उपजा रहे थे नक्सली
उन्हीँ हाथोँ मेँ कैसे मौत के हथियार हो गये
मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये
इन जंगलोँ मेँ अपनी ही पनाह मेँ थे नक्सली
धीरे ही सही तरक्की की राह मेँ थे नक्सली
मदद को इनके कोई न सलाहकार था
दीखता न तब कोई भी मानवाधिकार था
जबसे कर्म इनके लाशोँ के व्यापार हो गये
मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये
मासूमियत छोड़ कर ये अब दरिंदे बन गए
देशभक्तों की मौत के बाशिंदे बन गए
हर बुद्धिजीवी इनसे सहानुभूति का तलबगार है
आज इनके साथ भी ये मानवाधिकार है
आज इनके पक्ष में हर एक की दलील है
इनके साथ खड़ा बड़े से बड़ा वकील है
वो सिपाही वतन की खातिर जो क़ुर्बान हो गया
क्या कोई मीडिया उसके घर कि देहरी तक गया
वो माँ जिसने इस आहुति में अपना बेटा खो दिया
जिस पत्नी का सारा यौवन वतन की खातिर सो गया
जिस बच्चे के लिए बाप का भी साया हट गया
जिस बहिन की राखी का हर धागा सिमट गया
केह दो बुद्धीजीवियों से न यूं चर्चा और भ्रमण करें
जाकर उन शहीदों के घर पर नमन करें
उस माँ ,बहन कि खातिर ये कवी बोल रहा है
छोड़ कर श्रृंगार लहू को लबों से तौल रहा है
आज हर देशवासी से करता आह्वान है
कोई तो बताये इसका क्या निदान है
अब भी न सम्भाले तो ऐसा वक़्त आएगा
शहीदों के लहू का दाग हर एक घर तक जाएगा
अब और कितनी मासूम मौतो के गवाह बनेंगे
वतन के सिपाही के कत्ल के पर्याय बनेँगे
कोसेँगे न अँधेरे को स्वयं ही दीप जलायेँगे
अपने आप को राजनीती का न मोहरा बनायेँगे
मासूमोँ की नस्ल के कत्ल के गुनाहगार हो गये
Read Comments