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फतह का जश्न मनाता तो मनाता कैसे (ग़ज़ल)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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खुद से ही जीता हूँ और खुद से ही हारा हूँ
फतह का जश्न मनाता तो मनाता कैसे
ख़ुशी में तुझको भूलने की मेरी फितरत है
ग़मों में तुझको बुलाता तो बुलाता कैसे
अपने कल की खातिर ही तुझसे दूर हुआ
अपने आज को सजाता तो सजाता कैसे
मिटाना खुद को है खातिर खुदा को पाने की
अहम को अपने मिटाता तो मिटाता कैसे
तम जो होता तो एक दीप ही जला दिया होता
खुद ” दीपक ” हूँ तले से अँधेरा हटाता कैसे

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