CHINTAN JAROORI HAI
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अब न ताज रहा न ही कोई तख्त रहा
बिना छाँव का मैँ सूखा सा दरख्त रहा
नशा तरक्की मुझ पर यूँ चढा जालिम
एक कठपुतली सा मैँ बेजुबान भक्त रहा
अपने भी उसूल थे अपनी भी कोई इज्जत थी
अपने जमाने मेँ मैँ आदमी बडा सख्त रहा
स्वार्थवश मैँने वहशियोँ को भी माफ किया
मैँ मसीहा था मेरा भी एक वक्त रहा
सामने पडा जो आईना तो ये मंजर देखा
खाली था आईना मेरा न कोई अक्स रहा
अपनोँ मेँ खो गया इतना कि हुआ तन्हा
दर्द और पीडा का मुझसे न कोई रब्त रहा
दीपक पाण्डेय नैनीताल
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