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कर्मों का फल (लघु कथा)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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सड़क के कोने में चीथड़ों से लिपटी वह वृद्धा दो दिनों से उसे अन्न का एक भी दाना नसीब नहीं हुआ यदा कदा उसे देख कोई रहगीर सहनुभूतिवश कुछ सिक्के उसकी ओर दाल जाता है नियती की विषम लेखनी ने उसकी किस्मत की किताब में आखिर ये कौन सा अध्याय लिख डाला जो आज वो इस कदर दाने दाने को मोहताज है यही सोचकर वह अतीत की स्मृतियों में खो जाती है
जब वह शादी होकर इस शहर में आयी थी उसके पति रामनरेश जी पी डब्लू डी में सीनियर इंजीनियर थे पर यह क्या ये व्यक्ति तो निपट ईमानदार निकला कोई ऐशो आराम नहीं हालांकि शहर में वो एक इज्जतदार व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे परन्तु इज्जत से गहने नहीं खरीदे जाते यह वह भली भाँती जानती थी उसे अपनी माँ की सीख आज भी याद थी “बेटी त्रिया हठ संसार में ऐसी चीज है जिसके आगे बड़े से बड़े महामानव भी झुक जाते हैं ” उसने माँ की सीख के अनुसार ऐसा ही किया आखिर पति को झुककर अपने उसूलों को तोडना पड़ा कुछ ही सालों में उनकी गिनती शहर के नामचीन रईस लोगों में होने लगी इसी बीच उन्हें एक पुत्री और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई शादी की बीसवी सालगिरह में रामनरेश जी चल बसे पुत्र को अपने पिता के ही कार्यालय में नौकरी मिली परन्तु काली कमाई की शौहरत उसे इस कदर बिगाड़ चुकी थी की छोटी सी उम्र में वह मदिरा के सेवन का आदि हो चुका था दामाद इनकम टैक्स में कमिसनर था
वह याद करती है जब बेटी पहली बार मायके आयी थी और उसे अपने सास ,ससुर के साथ रहने को मजबूर होने की समस्या से अवगत कराया था समाधान हेतु उसने बेटी को वही त्रिया हठ वाली सीख दी और कहा दुनिया में पैसा ही सब कुछ है रिश्ते ,माँ,सास ससुर कुछ भी नहीं फलतः बेटी की समस्या का समाधान हुआ समय बदला बेटे का अधिक मदिरापान की वजह से देहांत हो गया उसकी वसीयत के अनुसार उसकी साड़ी जमीन जायदाद उसकी बहिन के नाम हुई बेटी आयी सारी जायदाद लेकर चली गयी और माँ सड़क पर आ गयी उसकी हवेली पर एक बेटी ने एक पाठशाला खोल दिया गया जिसके बाहर आज वह सोने को मजबूर थी
मगर फिर भी भूखे होने पर भी उसकी आँखों में पश्चाताप से भरी अजब संतुष्टी थी बेटी ने आखिर उसके साथ भी वही तो किया जो उसकी सीख के तहत उसकी बेटी ने अपनी सास ,ससुर के साथ किया था यह सीख उसने स्वयं ही तो अपनी बेटी को दी थी आज वो अपने ही कर्मों का फल तो पा रही थी

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