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देहरादून रेलवे स्टेशन का एक प्लेटफार्म देहरादून से काठगोदाम को जाने वाली रेलगाड़ी अपने नियत स्थान पर खड़ी थी चूंकि अभी काफी समय शेष था अतः ए.सी. टू टियर डब्बे का दरवाजा अभी नहीं खुला था अपना एक से छह तक की सीट पर नाम देख आश्वस्त होकर वो छह भद्रा पुरुष दरवाजे के ही पास खड़े हो गए तभी एक लगभग ७५ वर्षीय वृद्धा का आगमन हुआ फटे मैले कुचले कपडे ,दो दिन से कुछ न खाए जाने की दुहाई देकर वह किसी आस में हाथ फैलाने लगी मगर उनमे से किसी ने उस पर दया किये बिना उसे आगे बढ़ जाने को कहा तथा आपस में कहने लगे दान देने से इन लोगों को और बढ़ावा मिलता है मेहनत के बिना किसी को भी एक रुपया भी नहीं देना चाहिए
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला वो सभी भद्रा पुरुष अपनी अपनी सीट पर बैठ गए टी टी का आगमन हुआ रेल का किराया बढ़ने की वजह से सभी की अतिरिक्त ९५ रूपये की रसीद कटी प्रत्येक ने टी टी को १०० रूपये थमा दिए रसीद काटकर टी टी उन सभी से हाथ मिलाते हुए थैंक्यू कहने लगा तथा आगे बढ़ गया वे सभी टी टी का ये थैंक्यू सुनकर अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे पांच रूपये वापस मांगने की किसी ने भी ज़हमत तक नहीं उठाई आखिर अधिकार के रूप में ली जाने वाली ये अनोखी भीख ही तो थी
दीपक पाण्डेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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