CHINTAN JAROORI HAI
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इमारत बुलंद हो गयी बुनियाद में नमी रही
शौहरत ए मंज़िल मिली माँ की ही कमी रही
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भानु की ही ओट में छाँव तलाशता रहा
स्वप्न की किरण में वो रात शबनमी रही
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आसमाँ की आस में परिन्दा उड़ता ही गया
न तो आसमाँ मिला न पैरों तले ज़मीं रही
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जीवन की ज़द्दोज़हद में दौड़ता चला गया
आयी जब सांस तो सांस फिर थमी रही
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एक दीप बुझ रहा तो दूजा टिमटिमा रहा
जिंदगी चलती रही जीवन की न कमी रही
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जिंदगी की आस में मौत से लड़ता रहा
जीवन एक भ्रम ही था मौत लाज़मी रही
दीपक पाण्डेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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