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कोई सलमा है ,कोई सीता है ,कोई निगार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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माहौल है ये जश्न का गले मिल रहे सभी
बैरी थे जो,धागे के बंधन में बंध गए अभी
घर में सभी के सिंवई और घेवर की खुशबू
फ़िज़ाओं में नशा छाया है अजब सा जादू
देश है ये पर्व का हर कोने में त्यौहार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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मेघों की ग़रज़ में भी एक नयी उमंग है
सीने में हिलोरें मारती,एक नयी तरंग है
कांवड़ लिए भोले के भक्त संग संग हैं
मन में नया उल्लास लिए मस्त मलंग हैं
देख मेघ मयूर नृत्य करता बारम्बार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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कोई शिव शम्भो की खातिर जल चढ़ा रहा
बंदगी में उस खुदा की कोई रोज़े मना रहा
दोनों का ही है उपवास जल भी नहीं नसीब
धर्म औ आस्था के हर कोई इतना है करीब
शांति और सुक़ून का हर कोई तलबगार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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हज़ यात्रा में जाने की यहां ज़िद में अड़ रहे
अमरनाथ को जाने की खातिर कदम बढ़ रहे
गले मिल रहे हैं सभी न कोई वैमनस्य है
एक दूजे के लिए बन रहा ऐसा तारतम्य है
मुल्क के हर कोने में मन रहा त्यौहार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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हर रोज़ यहां भंडारा लगा है खैरात में
दान का भी अम्बार लगा है ज़कात में
ईदी की चाह में बच्चों में अलग उल्लास है
भाई से धन झटकने का बहन का प्रयास है
आसमान में भरा पतंगों का अम्बार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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बागों में झूले पड़ गए ये मास आ गया सावन
सजनी से मिलन को हर एक व्याकुल है सजन
हर एक शाख में नयी ही एक कोंपल पनप रही
हर राधा अपने कान्हा की खातिर तड़प रही
भँवरे का हर कली से एक अलग करार है
कहीं ईद मन रही तो कहीं राखी की बहार है
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दीपक पाण्डेय
जवरर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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