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आदरणीय जागरण संपादक महोदय
mujhe aaj yah batate hue अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है की आपके तथा समस्त जागरण परिवार के द्वारा मिले सहयोग और प्रेरणा से मैंने एक पुस्तक का संपादन किया है आपके माध्यम से मई यह कहना चाहता हूँ की कविताओं की यह पुस्तक डाक के वी पी पी खर्च समेत मत्र१०० रुपये की है जो भी यह पूस्यक पाना चाहता है वह अपना पता कमेंट के रूप में लिख दे में उसे यह पुस्तक भेज दूंगा वी पी पी के द्वारा यदि कोई न भी लेना चाहता हो तो वह मेरे इस लिंक में पुष्कक की कैटऑन का आनंद ले सकता है
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अंत में मैं अपनी वाणी को यही एक अपनी कैट के साथ विराम देता हूँ
मेरा घर फिर मुझे पुकार रहा है
आज मेरी राह को निहार रहा है
मेरा उस घर में क्या किरदार रहा है?
बचपन मेरा उस मिट्टी में उधार रहा है
मेरा घर फिर मुझे पुकार रहा है
वो जमीँ अब जिसमें आम का दरख्त न रहा
अपनों के लिए अपनों के पास वक्त न रहा
अपनों के बीच आज कोई रब्त न रहा
रिश्ता वही आज सबको लगा गुहार रहा है
मेरा घर फिर मुझे पुकार रहा है
खेल का मैंदान छोटी सी गली में सिमट गया
पीछे बना एक झोपडा भी हट गया
न जाने कैसे एक विशाल वक्त कट गया
वो अतीत मेरा बचपन का जो गवाह रहा है
मेरा घर फिर मुझे पुकार रहा है
दीपक पाण्डेय
जवाहर नोदय विद्यालय
नैनीताल
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