CHINTAN JAROORI HAI
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मैंने बरसों पहले भावनाओं के कुछ बीज बोये थे
अनजान रिश्तों के कुछ सपने संजोये थे
कल्पनाओं के केनवस पर एक उपवन खींचा था
अंजलि भर आस्था के जल से नित सींचा था
श्रद्धा की ईंटों से बनाई वो क्यारी थी
विश्वास की वो अटूट फुलवारी थी
बीजों के अंकुरण का इंतज़ार था
उन दानों को मुझपर ऐतबार था
वो बीज माटी में फिर अंकुरित हुए
गैरों से भी नए रिश्ते सृजित हुए
हवा मिली एक नवीन सद्भावना की
पुष्प पल्लवन की मनोकामना की
बरसों बाद आज भावनाओं के वो दाने
आस्थाओं के दरख्तों में तब्दील हो चुके हैं
जिनमे श्रद्धा की कलियाँ खिली हैं
विश्वास के फल लदे हैं
सद्भावना के पत्तों से छनकर
रिश्तों की गुनगुनाती धुप
सबमे नया जोश भर रही है
और सर्वे भवन्तु सुखिनः की
मनोकामना को पूर्ण कर रही है
दीपक पाण्डे
नैनीताल
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