Menu
blogid : 14778 postid : 782091

हिंदी की दुर्दशा(हिंदी दिवस)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
  • 179 Posts
  • 948 Comments

हिंदी की दुर्दशा
साल दर साल पीछे खिसकती रही है
हिंदी अपने ही मुल्क में सिसकती रही है
रोजगार दिलाने की भाषा न बन सकी
गरीबो के ऊँचे सपनो की आशा न बन सकी
अपनी जमीन में ही तरक्की की परिभाषा न बन अकी
जीवन के हर पायदान में किलस्ती रही है
हिंदी अपने ही ……………………..
बोलने में हिंदी आती हर किसी को लाज है
हिन्दोस्तान में ही नहीं होते हिंदी में काज हैं
हिंदी को छोड़ अन्य भाषा में ही बजता हर साज है
अपने ही अस्तित्व की तलाश में ही भटकती रही है
हिंदी अपने ही ………………………………
अपने ही वतन में हिंदी का सम्मान नहीं है
हिंदी दिवस में भी हिंदी में व्याख्यान नहीं है
कुछ हुक्मरानों को हिंदी का भी ज्ञान नहीं है
अपने ही सम्मान को स्वयं तरसती रही है
हिंदी अपने ही ……………………………
आम आदमी में महज निराशा बन के रह गयी
गरीबों के बीच गरीबी की भाषा बन के रह गयी
न जाने अब तक कितना अपमान सह गयी
देश के हर कोने में बिलखती रही है
हिंदी अपने ही ………………………..
हर ओहदे के लिए हिंदी को जरूरी बना डालो
हिंदी सीखना हर शक्श की मजबूरी बना डालो
हिंदी से अनभिज्ञ की शिक्षा को अधूरी बनो डालो
फिर देखो कैसे न बनती हिंदी की भी अपनी हस्ती है
फिर न हिंदी अपने मुल्क में सिसकती रहेगी
जहा नजर पड़ेगी खिलखिलाती हंसती रहेगी

दीपक पाण्डेय
नैनीताल

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply