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जन्मने से पहले जो जीवन न पा सका
जो देखने बचपन दुनिया में न आ सका
जिस माँ को खुदा के समकक्ष दर्जा दिया गया
उसी कोख में बचपन का ही क़त्ल किया गया
मारा उसी ने जो दुनिया को देता रहा मरहम
मानवता की रक्षा की जिसने खाई थी कसम
अजन्मी संतानो को जन्म का उपहार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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एक माँ की गोद में तो एक उंगली को थामे
भीख मांगते गुजरते क्या सुबह और शामे
बढ़ते जा रहे हैं तीनों इसी आगोश में
ज्यादा कुछ मिलेगा भावनाओं के जोश में
वो बचपन जो बचपन में बना बाल मजदूर है
रोटी की विवशता को कमाने को मजबूर है
बिलखते हुए बचपन को थोड़ा श्रृंगार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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बचपन जो थैली लिए बैठा है कूड़े के ढेर पर
आज ज्यादा कुछ पायेगा इसको उकेर कर
बचपन जो आज घर में भी महफूज़ नहीं है
अपनों की ही कुदृष्टि है ये मालूम नहीं है
बचपन में ही जो बचपन से महरूम हो गया
समय से पहले जिसको सभी मालूम हो गया
इन बच्चों की खातिर एक सलाहकार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा है वो इस दयार में
जकड़ा जा रहा है अश्लीलता के संसार में
जिसे मवेशियों की भाँती यूं ठेल दिया गया
देह व्यापार की गलियों में धकेल दिया गया
हैवानियत में पला तो खुद हैवान बन गया
दुनिया की नज़रों में मासूम शैतान बन गया
बदलो कुछ इनका भी जीवन चमत्कार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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महत्वाकांक्षाओं में बड़ो की गुमसुम सा हो गया
ऐसे जैसे किसी अधखिले कुसुम सा हो गया
प्रतियोगिता की दौड़ में न अब कोई ठहराव है
अव्वल ही आना बस है ये ही तनाव है
माँ बाप हैं मगर नहीं ममता का आँचल है
पालने को इन्हे मिला बस आया का दल है
अपने इन बच्चों को थोड़ा सा प्यार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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आज करुण रस है कविता की आवाज़ में
मनाएं बाल दिवस कुछ इस अंदाज़ में
कविता को पड़ कर इस थोड़ा करें मनन
दुनिया के इन बच्चों का समझो जरा क्रंदन
इन्हे भी दे दो जरा बचपन का वो आँगन
चिंतन करो और चिंतन को थोड़ा निखार दे दो
हल्का प्रयास ही सही बचपन उधार दे दो
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दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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