CHINTAN JAROORI HAI
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करते हो इज़हार अवशेष का
जिन आकाओं के इशारों पे
छोड़ भागे थे वो अपनों की लाशें
मैदान ए कारगिल के किनारों पे
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न अलापते राग कश्मीर का
दशकों से गैरों के इशारों पे
तो पहुँच जाते वो आका भी
चन्द्र औ मंगल गृह के द्वारों पे
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संभल जाते न बोते बीज जो
नफरत का इन गलियारों पे
न कटता उन मासूमों का गला
रख के अपने ही दिए हथियारों पे
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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