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जेठ की तपती धरा
चहुंओर हाहाकार था
व्याकुल जीव जंतु सभी
मानसून का इंतज़ार था
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मेघों की तब एक छटा
आकाश में छाने लगी
पक्षियों के आकुल कंठ में
एक आस दिखलाने लगी
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आया समय मधुमास का
प्रजनन सृजन का काल था
नव आगंतुकों के आगमन पर
एक अदद घरोंदे का सवाल था
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मेरे आँगन भी आया एक जोड़ा
खग का बहुत क्रंदन किये
श्याम वर्ण पंखों का कुछ
बीचोंबीच नीली छटा लिए
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गीली माटी चोंच में ले
दीवार पर चिपकाने लगे
एक करे आराम तो एक
चलता है कुछ माटी लिए
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दिख रहा था दीवार पर
आगाज़ नए संसार का
मिटटी का वो एक घरोंदा
सुराही के से आकार का
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यह क्या गौरैय्या का एक
जोड़ा भी उधर आने लगा
बने बनाये घोँसले पे उस
हक़ अपना जतलाने लगा
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हुआ संघर्ष पखेरुओं में
अंत में यही परिणाम था
ताकतवर गौरैया का जोड़ा
अब घर उसी के नाम था
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इंसानो में अब तक सुना
भू माफिआओं का जाल है
पक्षियों में भी होने लगा ये
कलयुग की ही कुछ चाल है
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आ रहा क्या घोर कलयुग
क्या बह रही आबो हवा
पशु पक्षियों में भी असर
कुछ हाय अब दिखने लगा
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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