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यह मेरी उस यात्रा का वर्णन है जिसके दौरान मैंने अपने आपको सबसे सुखी ,संतुष्ट एवं संपन्न महसूस किया चूंकि परिवार सहित की जाने वाली यह यात्रा पूर्वनिर्धारित थी तो सभी आरक्षण पहले ही करा लिए गए थे नैनीताल से दिल्ली और अगले दिन मुंबई की ओर प्रस्थान दिल्ली में एक रात पत्नी के रिश्तेदार के घर रुकना तय था जो उन्हें पहले ही बता दिया गया था हम दिल्ली पहुँचने ही वाले थे रिश्तेदार को दूरभास से सूचित किया गया परन्तु उनके द्वारा शहर से बाहर होने की बात कहकर टाल दिया गया वैसे भी जब व्यक्ति मध्यवर्गीय भूमिका से थोड़ा ऊपर उठता है तो अपने साथ वालों से उसका इस तरह का व्यवहार स्वाभाविक है अब समस्या इतनी रात रुकने के इंतज़ाम की थी तब मैंने अपने शिष्य अनिरुद्ध तोमर को दूरभास से संपर्क कर ये समस्या बतायी वह तो मेरे दिल्ली आने की बात सुनकर खुशी से झूम उठा और कहने लगा सर मैं अभी आपको लेने स्टेशन आ रहा हूँ और फिर उस रात अपने घर ले जाकर पूरी खातिरदारी के बाद उसने अगले दिन हमें मुंबई की ट्रेन में बैठा दिया
अब मुंबई अपने एक अन्य रिश्तेदार के घर जाना था परन्तु पहले दिन के अनुभव के कारण मन में एक संशय था सुबह अँधेरी स्टेशन पहुँचने से एक घंटे पहले ही दूरभास में घंटी बजी एक अनजान नंबर से एक अनजान आवाज़ ” सर मैं सचिन बोल रहा हूँ आई आई टी मुंबई से यहाँ गेस्ट हाउस में आपके रहने का पूरा इंतज़ाम है ” मैं आश्चर्यचकित था शायद अनिरुद्ध ने मेरे मन की शंकाओं को पड़कर पहले ही सचिन को इंतज़ाम करने को कह दिया था सचिन मुझे लेने स्टेशन तक आ चूका था परन्तु उसके बहुत आग्रह करने के बावजूद भी मैंने अपने ममेरे भाई के घर जाना उचित समझा
सचिन एक गरीब पृष्ठभूमि का छात्र था जो आजकल आई आई टी मुंबई से परास्नातक कर रहा है अगले दिन वह भाई के घर मुझे लेने फिर आया और मुंबई घुमाने का आग्रह करने लगा मैं उसे टाल न सका वहाँ से गेटवे ऑफ़ इंडिया से होते हुए हम एलिफेंटा केव पहुंचे वह नाव का किराया देने की ज़िद करने लगा परन्तु मैंने उसे ऐसा करने से रोका अगली बार खाने का पैसा वो देना चाहता था परन्तु मैंने ये कह कर टाल दिया की अभी तुम कमाते नहीं हो तब उसका जवाब था की उसके सरकार से साढ़े छह
हज़ार का वज़ीफ़ा मिलता है और ये समस्त पैसा उसने मेरी यात्रा के लिए बचा कर रखा है उसके इन शब्दों को सुनकर हम दोनों पति पत्नी की आँखों से आंसू छलक पड़े आज हम दोनों अपने आपको दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति समझ रहे थे उसकी ये भावना ही शायद हमारे लिए सब कुछ थी
सचिन तुम्हारी और इन ६५०० रूपये के आगे दुनिया की सारी दौलत बेकार हैं मेरी पत्नी का कहा है की इतनी इज़्ज़त और प्यार तो शायद हमारा अपना बेटा भी हमें नहीं दे पायेगा जितना हमने इस उम्र में अनिरुद्ध और सचिन से पा लिया सच आज मुझे अनिरुद्ध और सचिन जैसे शिष्य पाकर अपने आप पर गर्व है जो लोग आज नयी पीड़ी को दोष देते हैं उन्हें मैं ये कहना चाहूँगा की ये बच्चे भी नयी पीड़ी के ही हैं और शायद ये नयी पीड़ी हमसे ज्यादा भावुक और संस्कारी है मुझे इन दोनों ने वो सुख प्रदान किया है जिसके द्वारा मैं अपने आपको दुनिया का सबसे संपन्न ,सुखी और संतुष्ट व्यक्ति मान सकता हूँ
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