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आज के शीर्षक के अनुसार मैं सर्वप्रथम जिक्र करना चाहूंगा कन्या भ्रूण हत्या का I यूँ तो भारत में पुरुष ,महिला का अनुपात ही इस तथ्य को उजागर करने के लिए काफी है की यह समस्या किस कदर महामारी का रूप धारण कर चुकी है यह समस्या किसी एक वर्ग की न होकर समाज के निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्ग सभी में फैली हुई है एक आंकड़े के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लाखों अवैध गर्भपात किये जाते हैं दुसरे शब्दों में ईश्वर की सबसे बड़ी रचना कही जाने वाली माँ की कोख में एक नन्हे शिशु की हत्या कर दी जाती है अधिकतर यह हत्या कन्या भ्रूण की ही होती है मगर जब चिकित्सक लालची ही हो गया है तो कई बार वह बालक की भी भ्रूण में कन्या बताकर हत्या करने लगे हैं क्योंकि इससे उन्हें ऑपरेशन की एकमुश्त रकम जो मिलती है यह आंकड़ा तो कन्या भ्रूणहत्या का है इन गर्भपातों में हज़ारों अवैध संक्रमित होते हैं जिनसे हमारे देश में हज़ारों माताओं की भी मौत संक्रमण के कारण हो जाती है हालांकि यह भी एक प्रकार की हत्या ही है परन्तु इसे मात्र संक्रमण का नाम देकर अपने कर्तव्व्यों की इतिश्री कर ली जाती है I
अब विषय आता है गौ हत्या का ,सवाल यह उठता है की इतनी गाय और बैल आते कहाँ से हैं गाय को माँ कहने वाला हिन्दू समाज ही तो इन्हे पालता है फिर शहर के हर चौराहे पर ये आवारा पशु कैसे घुमते हुए नज़र आते हैं जो लोग गाय पालते हैं जब तक गाय दूध देती है तब तक तो उसे चारा देते हैं जब गाय बूढी होकर चारा देना बंद कर देती है तो उसे यूं ही आवारा छोड़ देते हैं या जंगल में छोड़ आते हैं कई बार तो ऐसे तथ्य भी सामने आये हैं की वो इन बूढी गाय को जंगल में पेड़ के सहारे बाँध आते हैं जिससे वह घर वापस ना आ सके या आसानी से जंगली जानवर का निवाला बन सके और यह पशु किसी न किसी रूप से कसाईखाने भी पहुँच जाते हैं क्या यह क्रूरता नहीं
हालांकि कुछ संगठनों ने लोगों में जागरूकता बड़ा कर कई शहरों में गौशाला का निर्माण किया है जिसमे यही सब गायों को पाला जाता है और इनका भरण पोषण किया जाता है जो की एक सराहनीय कदम है
अब तीसरे विषय की बात वोट बैंक , चूंकि भ्रूण ह्त्या में समाज के सारे ही वर्ग लिप्त हैं तो इस समस्या पर सभी मौन हैं और सियासत को वोट बैंक की खातिर इस मुद्दे से कोई लाभ नहीं अतः इस मुद्दे पर सारा समाज मौन है यह भी एक बड़ी विडम्बना ही तो है जो समाज एक गौ ह्त्या के बार्रे में इतना उग्र है वह लाखों भ्रूण हत्याओं के मामलों में इतना संवेदनहीन क्यों है
अंत में अपनी एक कविता के साथ इसका अंत करना चाहूँगा
गूँगी चीख
आज गर्भस्थ बच्ची की कथा सुनाउँगा
यम की भी रूह काँप उठे वो बताउँगा
मासूम थी वह गर्भ मेँ उम्र दस सपताह थी
पलटती थी अँगूठा चूसती धडकन एक सौ बारह थी
जैसे ही एक औजार ने कोख की दीवार को छूआ
डर से वह सिकुड गयी जाने यह क्या हुआ
धीरे धीरे उस गुडिया के अंग यूँ कटे
बारी पहले कमर की थी फिर पैर भी कटे
औजार से बचने का प्रयत्न कर रही थी वो
बुरी तरह सहम गयी थी अब धडकन थी दो सौ दो
पन्द्रह मिनट के इस खेल मेँ हर कोशिश थी जारी
सब कुछ कट गया अब सिर की थी बारी
मुख खोल जिन्दगी की माँग रही वो भीख थी
शायद वो उसकी पहली और आखिरी गूँगी चीख थी
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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