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आज अपने नए वर्ष के संकल्प के विषय में बताना चाहूँगा जब मैं अपने पुराने विद्यालय हिन्दू नेशनल इण्टर कॉलेज देहरादून को देखने गया तो पता चला की जिस स्कूल में कभी १५०० के लगभग छात्र पढ़ते थे अब वह संख्या मात्र सैकड़ा में रह गयी है शायद यही स्थिति लगभग सभी सरकारी विद्यालयों की होती जा रही है मैं सिस्टम को दोष नहीं देना चाहता आखिर हमने भी अपने विद्यालय को क्या दिया ये सरकारी विद्यालय निम्न और मध्यम वर्गीय छात्रों का एक मात्र सहारा होते हैं हमारी ही भाँती जो छात्र अपनी फीस भी जमा नहीं कर सकते थे ये विद्यालय उस वर्ग का एकमात्र सहारा होते हैं यदि ये विद्यालय ख़त्म हो गए यह निम्न और मध्यम वर्ग शिक्षा से वंचित रह जायेगा और देश की मुख्या धारा से नहीं जुड़ पायेगा इस विद्यालय से पड़कर छात्र विविध बड़े बड़े पदों पर कार्यरत हैं
आज हमने इन विद्यालयों से बहुत कुछ पाया है परन्तु क्या कभी सोचा है की हमने कभी इसे वापस कुछ दिया भी है आज यह सरकारी विद्यालय न होता तो धन के अभाव में शायद हम अनपढ़ ही रह गए होते अब समय आ गया है की उसी निम्न वर्ग की खातिर जिससे हम खुद आये हैं इन मरते हुए विद्यालयों को फिर से जिलाना होगा हमें इनको बचाने में समूचा योगदान देना होगा ये जरूरी नहीं ये योगदान धन के द्वारा ही हो कुछ लोग तो अब अपने पैतृक शहरों में भी नहीं हैं तो जो लोग उसी शहर में हैं वो इन विद्यालयों को गोद लें वहाँ कुछ समय पढ़ाने जाकर अपना योगदान भी दिया जा सकता है जो लोग दुसरे शहरों में हैं वे अपने उसी शहर के मरते सरकारी विद्यालयों को बचाने में योगदान दें अन्यथा हमारा एक निम्न और निम्न मध्यम वर्ग शिक्षा से वंचित रह जायेगा हमें स्वयं जाकर उन विद्यालयों में पढ़ाकर या इंफ्रास्ट्रक्चर में योगदान कर उन्हें अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट विद्यालयों के समकक्ष लाना होगा
जीवन में अब तक बहुत कुछ पाया ही है इस समाज से इस वर्ष संकल्प लें की जिस तरह हमने समाज से पाया है उसे लौटने के समय आ गया है और कृपया अपने बचपन के विद्यालय को मरने न दें जिसमे पड़कर हम इतने सक्षम बन गए वह सिलसला जारी रहे और कोई वर्ग शिक्षा से वंचित न रहे तो कम से कम एक विद्यालय को बचाने की इस वर्ष कोशिश जरूर करनी है यही इस वर्ष का संकल्प है
इसी विषय पर अपनी कविता के साथ
हंसना सिखाया जिसने वही बिलख रहा
चलना सिखाया जिसने वही खिसक रहा
इस वर्ष में एक बार उस भूमी पे जाना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
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जीना सिखाया जिसने अंतिम सांस गिन रहा
संघर्ष सिखाया जिसने वो धराशायी पड़ रहा
जिसमे खुद कभी पढ़े आज उसमें पढ़ाना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
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कमाया सिखाया जिसने वो बदहाल हो गया
रोज़गार दिलाया जिसने वो फटेहाल हो गया
उस जर्जर हुई इमारत को फिर से उठाना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
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बरसों से ज्ञान के क़र्ज़ का बोझ है हम पर
नहीं आ सके मिलने यही दोष है हम पर
इस वर्ष बस एक बार तुझसे मिलने आना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
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जिसने ज्ञान का हमें प्रथम सबक पढ़ाया है
बचपन सारा जिसके आँगन में बिताया है
फिर से उस आँगन में अब समय बिताना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
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अब और न विकास की अंधी दौड़ को खींचो
जिस वृक्ष से जुड़े थे उसकी जड को भी सींचो
जहां से भी हो जैसे भी हो इसकी मदद करो
इस ढलते हुए वृक्ष को अब फिर से खड़ा करो
शिक्षा के इस अटूट महल को फिर से सजाना है
बचपन के विद्यालय को फिर से जिलाना है
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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