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आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसद
आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाने वाले इस देश में ऐसे सांसदों की भरमार है कई सांसदों के ऊपर कोर्ट में डकैती ,अपहरण और हत्या जैसे संगीन जुर्म के केस चल रहे हैं जब लोकतंत्र में जहां एक और अपनी सरकार बनाने का अधिकार जनता को स्वयं है तो जनता ऐसे अपराधियों को हे अपना नेता क्यूँ चुनती है
सर्वप्रथम तो यह विचार करना होगा की इन काम पड़े लिखे या लगभग अनपढ़ अपराधियों में इतना आत्मविश्वास कहाँ से आया ८० के दशक तक ऐसे सांसदों की संख्या नगण्य थी परंतु नेता इन छुटभैये गुंडों का उपयोग मतदान में कुछ पैसे देकर अपने फायदे के लिए करते थे धीरे धीरे यह गुंडे स्वयं ही चुनाव लड़ने लगे और राजनीती में अपराधीकरण का एक नया दौर शुरू हो गया
अब सवाल यह उठता है की जनता इन्हें क्यूँ चुनती है जनता राष्ट्रहित छोड़कर अपने निहित स्वार्थ देखने लगी मसलन नेता अपनी जाति या क्षेत्र का होना चाहिए जो की जीतने पर उन्हें और उनकी जाती को कुछ लाभ देगा
या दुसरे शब्दों में कहिये तो जनता इन अपराधी नेता में रोबिनहुड की छवि देखने लगी इसका कारन देश की लचर कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार भी है जहां कानून के द्वारा कोई मामला सुलझाने में दो दशक लग जाते हैं वहीं इन अपराधी नेता द्वारा कुछ रकम देकर चाँद घंटों में मामला सुलझा लिया जाता है या सरकारी ऑफिस में भी इनकेइ सिफारिश के द्वारा कार्य आसानी से हो जाता है
इन अपराधियों को हमारे बुद्धिजीवी वर्ग का भी स्वार्थवश पूरा सहयोग रहता है जरा सोचिये इन अनपढ़ अपराधियों को जिनको अंग्रेजी भी नहीं आती उन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा आसानी से जमानत मिल जाती है जहां सारा काम काज अंग्रेजी में ही होता है मतलब बड़े बड़े वकील भी इनके प्रबल सहयोगी हैं
आजकल राजनितिक पार्टी भी जाती के आधार पर बनती हैं चुनाव भी उस क्षेत्र की जातिगत समीकरणों के आधार पर लड़ा जाने लगा है आज जितना भारत की साक्षरता का प्रतिशत बड़ा है उतना ही जनता में जातिगत और क्षेत्रवाद की मानसिकता बड़ी है और इसका सबसे बड़ा फायदा इन अपराधियों ने ही उठाया है
मगर अब जनता को स्वार्थ की मानसिकता से उठकर राष्ट्रहित में वोट देना होगा जाहिर सी बात है यदि आप जेल से लड़ने वाले किसी अपराधी को वोट दे रहे हैं तो यह आपका निहित स्वार्थ ही हो सकता है राष्ट्रहित तो बिलकुल नहीं यह बदलाव स्वयं जनता को ही लाना होगा काम से काम स्वयं को बदलें की आपका वोट किसी अपराधी को न मिले भले ही वह किसी भी पार्टी या जाती या क्षेत्र का ही क्यूँ न हो
अंत में अपनी पुस्तक की एक कविता के साथ मैं इस विषय का समापन करना चाहूँगा
षड़यंत्र का चिड़ियाँ स्वयं ही
जाल जब बुनने लगें
बहेलियों को हर बार अपना
रहनुमां चुनने लगें
चिड़ियों से कह दो अब
आत्ममंथन जरूरी है
खातिर चमन के ज़हन में
चिंतन जरूरी है
………………………………
बाढ़ जब बढ़ के स्वयं ही
खेत को खाने लगे
सिंह भी जब बिल्लियों के
आगे मिमियाने लगे
कह दो सभी जीव जंतुओं से
शक्ति प्रदर्शन जरूरी है
खातिर चमन के ज़हन में
चिंतन जरूरी है
…………………………………
पुष्प का रस ले भ्रमर जब
दूजे चमन जाने लगे
बागबां बन मूकदर्शक
गाना वही गाने लगे
तितलियों से कह दो
अब भवरों का उन
तर्पण जरूरी है
खातिर चमन के ज़हन में
चिंतन जरूरी है
…………………………….
नगर में जब द्रोपदी की
आबरू लूटने लगे
भीष्म भी दरबार में जब
टेकने घुटने लगे
कृष्ण का जन जन में तब
अवतरण जरुरी है
खातिर चमन के ज़हन में
चिंतन जरूरी है
दीपक पाण्डेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
263135
इस विषयपर आप सभी के विचार सहर्ष आमंत्रित हैं
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