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भारी मन से मास्टर जी अपनी धुन में चले जा रहे थे अभी दो साल पहले ही तो उन्होंने बेटे के बड़ी ज़िद करने पर अपने लिए ये कार खरीदी थी समाज सेवा की खातिर मोटरसाइकिल से भागदौड़ में दो बार उनके पैर में फ्रैक्चर हो चूका था फिर उन्होंने प्रोविडेंट फण्ड से समस्त पैसा निकाल कर ये कार खरीदी थी चूंकि घर में ज्यादा जगह नहीं थी और घर विद्यालय के पास ही था अतः इस कार को विद्यालय के ही प्रांगण में ही रखा जाता था हालांकि मास्टर जी आज भी विद्यालय पैदल ही जाते थे समाज सेवा के काम में दूर कहीँ जाने हेतु कार का उपयोग किया करते थे न जाने क्यूँ छात्रों ने उनकी ये कार जला डाली थी
अगले दिन विद्यालय में किसी छात्र ने बताया की अमुक छात्र का इस घटना में हाथ होने की आशंका है फिर क्या था मास्टर जी ने उस लड़के को बुलवा भेजा और जड़ दिए दो थप्पड़ पूछने लगे किस कारण से इस कृत्य को अंजाम दिया लड़का कहने लगा वो उनके कहने पर ……………अपना वाक्य पूरा भी नहीं कर पाया था की अन्य अध्यापक उसे घसीट कर अपने साथ यह कहकर ले गए रहने दो मास्साब इसे हम देखते हैं
मगर कुछ समय बाद सन्देश आया कि मास्टर जी आपने एक दलित जाति के छात्र पर हाथ उठाया है और जाति उत्पीडन का केस बनता है उसका पिता आपको ढूँढ रहा है और पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कराने की बात कह रहा है मास्टर जी ने सोचा कि ५८ की इस उम्र तक उन्होंने इतने बच्चों को मारा परंतु जाति के बारे में तो आज तक ख्याल आया अब तो मास्टर जी घबरा गए थे वह जानते थे कि अक्सर इन विद्यालयों में अन्य अध्यापकों के भड़काने पर छात्र ऐसा कृत्य कर ही देते थे मगर नाम जानने से पहले ही वह अध्यापक उसे ले जा चुके थे किसी ने कहा कि ऊपर जान पहचान होने पर मामला सुलझ सकता है पर मास्टर जी तो अपने शिष्यों के अलावा किसी को जानते तक नहीं थे
अगले दिन यह बात जंगल की आग की तरह सब जगह फ़ैल चुकी थी मास्टर जी जेल जाने का मन बना चुके थे परंतु सत्य की खातिर झुकने को तैयार न थे बस मन में एक टीस थी कि उम्र के इस पड़ाव में रही सही सारी इज़्ज़त धूमिल हो जाएगी यह सोच लिए अपने ख्यालों में खोये मास्टर जी बढ़ते चले जा रहे थे आज उन्हें ख्याल नहीं था उनके घर के समीप का होटल आ चूका था जहा उनके कुछ पुराने छात्र ताश खेलते और सिगरेट पीते दिखाई दे जाते थे जिनमे कुछ होटल के मालिक दुकान के मालिक तथा ढेकेदार थे मगर मास्टर जी को देखते ही सब ताश खेलना बंद कर अपनी सिगरेट छिपा लिया करते थे तथा कुछ भाग जाते थे हालांकि वे सब बीबी बच्चों वाले शादी शुदा कारोबारी थे मगर न जाने क्यूँ आज भी मास्टर जी से डरते थे और मास्टर जी भी उन्हें डांटने से नहीं चूकते थे सभी उन्हें धर्मात्मा कहा करते थे
मगर आज ये सब नहीं हुआ मास्टर जी तो पुलिस और जेल के ही विचारों में खोये परेशान थे अब तक मास्टर जी को अभिवावक की ओर से कई धमकी भरे फ़ोन आ चुके थे मगर फिर भी मास्टर जी को देखते ही किसी ने तेजी से बोला मास्साब ! इस बार इस शब्द का उल्टा असर हुआ मास्साब ये शब्द सुनकर ही घबरा गए और वहीं बेहोश होकर गिर पड़े लगभग तीन घंटे बाद जब मास्टर जी को होश आया तो सामने वही सब कारोबारी खड़े थे और सामने की कुर्सी पर एक अधेड़ उम्र के इंसान को कुर्सी में बाँध रखा था पूछने पर वे कारोबारी बोले कि आप ने बेहोशी में ही हमें सारा किस्सा बड़बड़ा दिया बाकी आपके पत्नी से पता चला मगर इसकी जाति और पुलिस केस मास्टर जी बोले यह सुन सब हंसने लगे और उनमे से एक बोला मास्टर जी ये सब तो आप जैसे शरीफों को डराने के हथकंडे हैं हमारे लिए ये सब कुछ नहीं हम तो बस एक ही भाषा जानते हैं जिसमे हम इसे समझा चुके हैं
मगर पुलिस ! मास्टर जी बोले तभी एक फ़ोन बज क्या मास्टर दीनदयाल जी बोल रहे हैं एस.पी .साहब बात करना चाहते हैं यह सुनते ही मास्टर जी के चेहरे की हवाइयां उड़ गयी मगर तभी दूसरी ओर से एक मधुर आवाज़ आयी गुरूजी प्रणाम मैं अंकुश कुमार बोल रहा हूँ वही अंकुश जिसे आपने गणित का गृह कार्य न होने पर मारा था बस उसी मार ने मेरा जीवन बदल दिया और आज मैं एस . पी . अंकुश कुमार बन गया अपने पुराने मित्रों से मैं पूरा किस्सा सुन चुका हूँ बस यह सोच लीजिये आपके शहर में किसी थाने आपके खिलाफ कोई रिपोर्ट नहीं लिखी जाएगी जिस अध्यापक ने मुझ जैसे दलित छात्र को इस मुकाम तक पहुँच दिया वह दलित का उत्पीडन कैसे कर सकता है और उस व्यक्ति को उसकी सज़ा मेरे ये मित्र पहले ही दे चुके हैं
आज मास्टर जी बहुत खुश थे बस मन में एक मलाल था कि आखिर धर्मात्मा कौन है ये अध्यापन के प्रोफेशन वाले आदर्शों का चोला लपेटे वो छात्रों को भड़काकर कोई भी अपराध करा देने वाले अध्यापक या फिर मेरे लिए सत्य की खातिर अपना सर्वस्व अर्पण कर लड़ने वाले ये ढेकेदार दूकानदार असली धर्मात्मा तो ये लोग हैं
दीपक पाण्डे
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
263135
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