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वह दुबली सी छरहरे बदन की अनजान लड़की आज विद्यालय के प्रांगण में क्या कर रही है चेहरे पर थकान साफ़ झलक रही थी मास्टर रामस्वरूप जी यह देखकर हैरान थे पास जाकर पूछने पर पता चला कि वह हरियाणा से रातभर का सफर तय कर यहाँ संविदा पर अध्यापक पद के लिए नियुक्त की गयी है
तो यह थी मास्टर जी की कविता मैडम से पहली मुलाकात
अचानक एक दिन छात्र कुछ शोर करने लगे वे इस बात पर अड़े थे कि रात भर उन्हें टी वी देखने की अनुमति मिलनी चाहिए परंतु आवासीय विद्यालय के नियमानुसार केवल ९ बजे तक की अनुमति थी छात्र अपनी बात पर अडिग थे मगर रामस्वरूप जी ने इनकार करते हुए सभी छात्रों को अनुशाशन की दुहाई देते हुए अपने अपने छात्रावास जाने को कहा I
चूँकी जिले में चुनाव का समय था और मास्टर जी की पीठासीन अधिकारी की ड्यूटी लगी थी अतः रामस्वरूप जी अगले दिन चुनाव ड्यूटी के लिए विदा हो गए रात के ग्यारह बजे थे कविता अपने कमरे में सोने की कोशिश कर रही थी कि अचानक उसे लड़कों के छात्रावास की ओर से कुछ शोर सुनाई दिया पास जाने पर पता चला रात में टी वी देखने की अनुमति न मिलने के विरोध में सभी छात्र डंडे हाथ में लेकर मास्टर रामस्वरूप के निवास की ओर जा रहे थे चूँकी कविता ये जानती थी कि मास्टर जी आज घर पर नहीं हैं उसके मन में रामस्वरूप जी के परिवार की सुरक्षा के प्रति विचार आने लगा उसने तुरंत प्रधानाचार्य को दूरभाष से सूचित किया I प्रधानाचार्य ने कहा वो यह सब जानते हैं और पुलिस को सूचना दे चुके हैं विद्यालय की अवस्थिति दूर होने की वजह से १ या २ घंटे तक पुलिस आ जाएगी साथ ही कविता को भी ये हिदायत दे डाली कि वह भी बाहर न निकलें I
अब कविता अपना मन पक्का कर चुकी थी कि वह जरूर जाएगी दरवाजे के पीछे जो उसने एक लोहे की छड़ रखी थी अपने साथ लेकर वह पीछे के रास्ते रामस्वरूप जी के घर के बाहर खड़ी थी चूंकि घर की ओर आने के रास्ते में सीढ़ियां बहुत तंग थी जिसमे से एक बार में केवल दो ही जन जा सकते थे कविता ने इसी जगह पर अपना मोर्चा संभाल लिया और वो लोहे की छड़ पीछे छिपा दी अब वो लगभग ४० छात्र भी डंडे लेकर आ चुके थे परंतु कविता ने उन्हें रोक दिया छात्र कहने लगे ” मैडम आप हट जाओ हम रामस्वरूप जी का बदला उनके परिवार से लेंगे ” कविता ने उन्हें समझाया कि” जो तुम करने जा रहे हो असल में वह किसी और की साज़िश है जिसने भी तुम्हे मास्टरजी के खिलाफ भड़काया है वह तुम्हारे द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है तुम कानून अपने हाथ में न लो ” यह सुनकर अधिकतर लड़के वापस चले गए परंतु लगभग १० लड़के अब भी अपनी बात पर अड़े थे समय बीतता जा रहा था एक लड़का बोला “मैडम आप अकेली हमें नहीं रोक पाएंगी ” इस पर कविता ने अपनी छिपाई हुई लोहे की छड़ लेकर कहा” रामस्वरूप जी के परिवार की रक्षा के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ इन सीढ़ियों से एक बार में केवल दो जन आ सकते हैं तुम लोगों में जिन दो को अपनी जान प्यारी न हो वो आगे बढ़ सकता है करीब १५ मिनट तक सन्नाटा छाया रहा कोई भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं कर पाया तब तक पुलिस आ चुकी थी और कविता रामस्वरूप जी के परिवार की रक्षा करने में सफल हो चुकी थी
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