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पहले आशाराम फिर रामपाल और अब राम रहीम आखिर समाज में ऐसे ढोंगी बाबा पनपते ही क्यूँ हैं सर्वप्रथम तो मैं ये कहना चाहूंगा कि अपने आप को ईश्वर कहने वाले इन बाबाओं का धर्म या ईश्वर से कोई लेना देना नहीं है यह तो महज़ दुकाने हैं जहां लोगों की समस्याओं का निवारण धन लेकर किया जाता है आखिर इतनी संख्यां में भक्त कहाँ से आते हैं दरअसल इन समस्याओं की जड़ ही लालच से शुरू होती है हमारे देश की आधी से ज्यादा जनता आलस्य और लालच से ग्रस्त है जो कि बिना म्हणत के किसी चमत्कार के द्वारा ज्यादा से ज्यादा पाना चाहती है और इस लालच में बाबाओं के चक्कर काटती है ज्ञातत्व रहे इस जनता का धर्म या प्रभु से कोई लेना देना नहीं है अमीर जनता अपने काले धन को सफ़ेद करने के लालच में इन धर्म के ठेकेदारों से जुड़ती है और अपना उल्लू सीधा करने के एवज़ में लाखों रुपये चंदा देती है गरीब जनता ज्यादा कमाने के लालच में इन ढेकेदारों द्वारा धर्म की आड़ में चलाये जाने वाले गैर कानूनी धंधों में जुड़ जाती है जिसमे इन्हे काम समय में ज्यादा धन की प्राप्ति होती है इन संस्थानों में जुड़ने वाला एक वर्ग वो भी है जो नए जमाने की दौड़ में अपनों और अपने समाज से तो काट गया है मगर अपनी एक पहचान बनाने के लिए इन संगठनों से जुड़ जाता है
मूल रूप से इन संगठनों का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है परन्तु यह देखा गया है कि इनमे महिलाओं की संख्यां भी बहुत ज्यादा है आखिर एक मध्यवर्गीय महिला अपना परिवार छोड़कर इसमें कैसे समय दे सकती है यह पैसे का लालच ही है जो इनको स्वयं को संगठन और बाबा को समर्पण को प्रेरित करता है वर्ना ईश्वर के अतिरिक्त किसी गैर मर्द को को देह के समर्पण का औचित्य ही नहीं है यह तो सीधे सीधे देह व्यापार ही है जिसमे या तो ये महिलाएं स्वयं जाती हैं या इन्हें धन के लालच में इनके परिवार के सदस्यों द्वारा धकेल दिया जाता है
जब तक हमारी जनता में ही आलस्य त्यागकर किसी चमत्कार की आस छोड़ कर्म कर कमाने की कामना नहीं होगी इन बाबाओं की दुकाने यूं ही सजती रहेंगी जनता को स्वयं जाग्रत होना होगा सुख और दुःख इस संसार में एक ही सिक्के के दो पहलु हैं दुःख से बचने के लिए कोई लघु रास्ता अपनाना ठीक नहीं है समर्पण केवल उस खुदा को किया जाता है खुदा के बन्दों को खुदा बनाकर कैसा समर्पण I
दीपक पांडेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
263135
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