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किडनी का सौदागर, रेलवे दुर्घटना और नन्हा प्रद्युम्न। देखा गया है कि इन तीनों विषयों पर मीडिया में काफी दिखाया जा रहा है। सत्ता पक्ष पर भी आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। परन्तु इन सबका मूल कारण भ्रष्टाचार ही है। आजकल समाज में लगभग हर व्यक्ति या तो भ्रष्टाचार में लिप्त है या फिर इसका मूकदर्शक बना बैठा है, यह सोचकर कि शायद इससे उसे तो कोई नुकसान नहीं है। परन्तु वह यह भूल जाता है कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसे इसका खामियाज़ा तो भुगतना ही पड़ेगा।
अब नन्हें प्रद्युम्न का ही वाकया लीजिये, यदि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने इस विद्यालय को मान्यता देते वक़्त अपना कर्त्तव्य बखूबी निभाया होता, तो शायद यह सब खामियां पहले ही दिख गयी होतीं कि बच्चों के शौचालय बस स्टाफ द्वारा भी इस्तेमाल किये जाते हैं। कई कमरे यूं ही बिना लॉक के खुले पड़े रहते हैं या सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह घटना टाली जा सकती थी।
इसी प्रकार किडनी का सौदागर डॉ. अमित एक बार पकड़े जाने के बाद दोबारा इस घिनौने मानवता विरोधी मानव अंगों की दलाली में शामिल नहीं हो पाता, यदि कानून के रखवालों या वकील ने कानून के लूपहोल का फायदा उठाकर उसे पहले बचाया न होता। कहीं न कहीं समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से ही वह दोबारा इस घिनौने कृत्य को अंजाम देने में सफल रहा। तीसरा, रेलवे में कोई भी सरकार रही हो परन्तु दुर्घटनाएं यूं ही कायम रहीं। यह भी एक तरह से रेलवे में व्याप्त भ्रष्टाचार का ही परिणाम है।
यदि मैं इन सब घटनाओं को जोड़कर देखूं, तो माना एक सीबीएसई कर्मचारी अपना कर्तव्य सही नहीं निभाता, तो उसके परिणाम में एक नन्हीं जान चली जाती है। परन्तु वह यह न सोचे कि इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हो सकता है किसी और के भ्रष्टाचार का परिणाम उसे भुगतना पड़े। जैसे शायद भविष्य में अपने बच्चे की जान रेलवे कर्मचारी द्वारा अपना कर्त्तव्य न निभाने पर होने वाली दुर्घटना में गवांनी पड़े।
अतः सर्वप्रथम हमें स्वयं अपने आपको सुधारकर इस भ्रष्टाचार को जड़ सहित उखाड़ फेंकना होगा। अन्यथा परिणाम हमें उपरोक्त घटनाओं के रूप में झेलने होंगे और किसी न किसी रूप में हम भी प्रभावित होंगे। इन सब प्रकरण को मैं अपनी कविता के माध्यम से समझाना चाहूंगा।
न्याय भ्रष्टाचार देव का
नारद जी एक दिन पृथ्वी पर आये,
हलवाई की दुकान देखकर चकराए,
बोले क्यूँ इतना मिलावट करते हो,
क्या ईश्वर से भी नहीं डरते हो।
बोला हलवाई इसमे
मेरा क्या जाता है,
भला हलवाई भी कभी
अपनी मिठाई खाता है।
आगे एक डॉक्टर
की दुकान मिली,
घटिया दवाई की कीमत
छूती असमान मिली,
पूछा तो ये जवाब मिला
तेरा दिल मेरे लिए
क्यूँ डरता है,
भला डॉक्टर भी कभी
बीमार पड़ता है।
आगे वकील पैरवी करता मिला,
मुजरिम बरी और पीड़ित डरता मिला,
वकील बोल मेरा क्या जायेगा,
मुजिम मेरे घर कभी न आएगा।
कुछ दिन बाद नारद जी
श्मशान घाट गए,
तीनों मिल गए वहां
हाथ में हाथ लिए,
हलवाई के बेटे पर
डेंगू ने वार किया,
बच गया पर नकली
दवाई ने मार दिया,
डॉक्टर के पुत्र को
मुजरिम ने अगवा किया,
पहचाने जाने के डर से
फिरौती लेकर मार दिया,
वकील का बेटा
पार्टी मनाने गया,
जहरीली मिठाई खाकर
स्वर्ग सिधार गया,
ये सब देख नारद घबराये
मन ही मन ये बुद्बुदाये
भ्रष्टाचार का देव
कितना सक्षम है,
इस देश में उसका
अनूठा न्याय कायम है।
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